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शुभ है ‘स्वास्तिक ‘

हिंदू धर्म में स्वस्तिक का प्रतीक एक प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक चिह्न है। इसका उद्भव वेदों और प्राचीन भारतीय संस्कृति में हुआ माना जाता है। स्वस्तिक का शाब्दिक अर्थ “सु- (अच्छा) + अस्ति (होना)” है, जिसका अर्थ है “कल्याणकारी” या “शुभ”। यह प्रतीक मुख्य रूप से शुभता, सौभाग्य, और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। इसके ऐतिहासिक प्रमाण निम्नलिखित स्रोतों और संदर्भों में देखे जा सकते हैं:

1. सिंधु घाटी सभ्यता (2600–1900 ई.पू.)

  • स्वस्तिक के चिह्न सिंधु घाटी सभ्यता की पुरानी मुहरों और मिट्टी के बर्तनों पर पाए गए हैं।
  • यह प्रमाणित करता है कि स्वस्तिक का उपयोग वैदिक काल से भी पहले होता था।

2. वेद और वैदिक साहित्य

  • स्वस्तिक का उल्लेख यजुर्वेद और अथर्ववेद में मिलता है।

इसे शुभ और कल्याणकारी माना गया है, और वैदिक यज्ञों में इसका उपयोग होता था।

3.धार्मिक उपयोग

  • स्वस्तिक हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा, शुभ कार्यों (जैसे विवाह, गृह प्रवेश) और त्योहारों (जैसे दीपावली) में उपयोग किया जाता है।
  • यह चार दिशाओं और चार वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, और अथर्ववेद) का प्रतीक भी माना जाता है।

4. महाभारत और पुराणों में उल्लेख

  • महाभारत और पुराणों में स्वस्तिक का उल्लेख जीवन चक्र और ब्रह्मांडीय संतुलन के प्रतीक के रूप में हुआ है।
  • विष्णु और सूर्य से जुड़े अनुष्ठानों में इसका उपयोग होता था।

5. मौर्य और गुप्त साम्राज्य काल के प्रमाण

  • स्वस्तिक के चिह्न प्राचीन मंदिरों, सिक्कों और अभिलेखों में पाए गए हैं।

यह संकेत करता है कि यह प्रतीक भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापक रूप से उपयोग में था।

बौद्ध और जैन धर्म में स्वस्तिक

  • बौद्ध धर्म में स्वस्तिक भगवान बुद्ध के चरण चिन्ह के रूप में दर्शाया गया है।
  • जैन धर्म में इसे सप्त सिद्धांत और मोक्ष का प्रतीक माना जाता है।

 तांत्रिक परंपराओं में स्वास्तिक 

तांत्रिक परंपरा में स्वस्तिक को शक्ति, संतुलन और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। यह अनुष्ठानों में सकारात्मक ऊर्जा को आमंत्रित करने और नकारात्मक शक्तियों को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किया जाता है। तांत्रिक परंपरा में स्वस्तिक का उपयोग निम्नलिखित प्रकार से होता है:

1. मंडल और यंत्रों में स्वस्तिक

  • तांत्रिक अनुष्ठानों में स्वस्तिक को मंडल या यंत्र के केंद्र में बनाया जाता है। यह अनुष्ठान के दौरान ऊर्जा को केंद्रित करने और दिशा देने का कार्य करता है।
  • स्वस्तिक के चार भुजाओं को दिशाओं का प्रतीक मानते हुए अनुष्ठान की प्रक्रिया को व्यवस्थित किया जाता है।

2.भैरवी पूजा और देवी अनुष्ठान

  • तांत्रिक परंपरा में स्वस्तिक को विशेष रूप से देवी पूजा के दौरान उपयोग किया जाता है। यह शक्ति और सुरक्षा का प्रतीक है।
  • स्वस्तिक को देवी के आह्वान के लिए भूमि, तांबे की प्लेट या चावल पर बनाया जाता है।

3. तांत्रिक यज्ञ और हवन

  • स्वस्तिक का उपयोग तांत्रिक यज्ञ या हवन कुंड के चारों ओर किया जाता है। यह अग्नि देवता और अन्य देवताओं को प्रसन्न करने के लिए शुभता का प्रतीक होता है।

हवन सामग्री रखने और मंत्रोच्चारण के लिए स्वस्तिक के आकार को महत्वपूर्ण माना जाता है।

4.नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में

  • स्वस्तिक का उपयोग नकारात्मक ऊर्जा को नियंत्रित करने और शत्रु बाधाओं को समाप्त करने के लिए किया जाता है।
  • तांत्रिक अनुष्ठानों में इसे विशिष्ट मंत्रों के साथ चारों दिशाओं में बनाकर रक्षा कवच के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

5. स्वस्तिक और तांत्रिक यंत्र

कई तांत्रिक यंत्रों (जैसे कि श्री यंत्र और काली यंत्र) के निर्माण में स्वस्तिक का उपयोग होता है। यह यंत्रों को सशक्त और प्रभावी बनाने में सहायक माना जाता है।

6.धार्मिक और तांत्रिक महत्व का मेल

  • तांत्रिक परंपरा में भी स्वस्तिक को केवल शक्ति का प्रतीक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति के लिए एक साधन के रूप में देखा गया है।
  • तंत्र में यह ब्रह्मांडीय संतुलन और “शिव-शक्ति” के मिलन का प्रतीक भी है।

स्वस्तिक के चार भुजाएं ब्रह्मांडीय ऊर्जा, सुख-समृद्धि, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष (जीवन के चार पुरुषार्थ), और ब्रह्मा-विष्णु-महेश का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह प्रतीक जीवन चक्र के सतत प्रवाह और संतुलन का भी प्रतीक है।

स्वस्तिक का हिंदू धर्म में ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। इसके प्रमाण प्राचीन भारतीय संस्कृति, धार्मिक ग्रंथों और पुरातात्विक खोजों में देखे जा सकते हैं। यह न केवल हिंदू धर्म, बल्कि बौद्ध और जैन धर्म में भी अत्यंत महत्वपूर्ण प्रतीक है।

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