Sunday, September 29, 2024
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दून मांटेसरी के वो दिन

देहरादून तब उन दिनों ऐसा नहीं था जैसा कि आजकल है उन दिनों देहरादून में इतना ट्रेफिक नहीं था, हरे भरे पेड़ काफी ज्यादा थे, हम लोग 70 के दशक मे टिहरी से देहरादून आ गए थे। मेरी प्रारंभिक शिक्षा मांटेसरी पब्लिक स्कूल से हुई, यहां मेरे काफी सारे मित्र भी बन गए। क्लास 4th के बाद जब क्लास 5th में मेरा एड्मिशन हुआ तो अचानक ऐसा लगने लगा कि अब हम बड़े हो गए हैं अब कुछ बड़ों जैसी बात होनी चाहिए , तब मैंने और कुछ मित्रों ने ये तय किया कि घर से स्कूल अब पैदल ही जाएंगे आटो या रिक्शा से नहीं, चूंकि काफी सारे बच्चे पैदल भी स्कूल जाते थे तो हमारे माता-पिता को हमारे पैदल स्कूल जाने में कोई आपत्ति नहीं थी। मेरा नाम प्रताप नैथानी है परंतु ‘ शाह’ उप नाम मित्रों ने हमें उपहार स्वरूप भेंट कर दिया। कई बार मित्र मंडली में जब कहा जाता “प्रताप शाह टिहरी वाले आ रहे हैं ” तो सच में महाराजाओं वाली फीलिंग मन में आती।
हमारे कमरे से स्कूल ढाई तीन कीलोमीटर दूर था । एक चिनार का पेड़ हमारे रास्ते में पड़ता था वहां पर हमारा मीटिंग प्वाइंट हुआ करता था, जो भी वहां पहले पहुंचेगा वो दूसरों के लिए रुकेगा, और यहां से हम पांच सात मित्र साथ में स्कूल जाते, स्कूल में हमारा ग्रुप ‘गुड ग्रुप आफ स्कूल’ के नाम से जाना जाता, स्कूल टीचर्स का कोई भी काम हो उसे करना हम अपना सौभाग्य समझते थे, चाहे वो प्रियंका मैडम के छोटे बच्चे की देखभाल करना या रावत सर के लिए पान मसाले की पुड़िया लाना हमारा ग्रुप सारे काम खुशी खुशी करता परंतु एक दिन कोई और भी टीचर्स की गुड बुक में शामिल होने के लिए आ धमका, इसका नाम विकास था विकास पालीवाल क्लास 5th में नया एडमिशन था, पढ़ने में काफी होशियार और हैंड राइटिंग काफी शानदार प्रियंका मैडम का प्यारा बनने में उसे ज्यादा देर नहीं लगी प्रियंका मैडम अब उस पर ज्यादा ध्यान देने लगी और हमारा ग्रुप प्रियंका मैडम के बच्चे की नैपी पर ध्यान देता कि कहीं बच्चे ने गीली तो नहीं कर दी ।
विकास को देख कर एक राइवल वाली फीलिंग तो आती थी परंतु हम अभी भी गुड ग्रुप आफ स्कूल में थे तो चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते थे।
एक दिन प्रियंका मैडम हमें सोलर सिस्टम के बारे में पढ़ाने वाली थी उन्होंने हम से सोलर सिस्टम का माडल जो कि कार्ड बोर्ड, थर्मोकोल और लकड़ियों की स्टिक से बना था ला कर टेबल पर रखने को कहा था, मैं जब माडल को हाथ में उठा कर ला रहा था तो फर्श पर किसी बच्चे की पानी की बोतल लुढ़क कर आ गई और पानी फर्श पर फ़ैल गया, पानी पर मेरा पैर पड़ना था और मैं धड़ाम फर्श पर आ गिरा, अब जब मैं उठा तो ‘ मार्स और ज्यूपिटर फर्श पर पड़े हुए थे और शनि कि रिंग दरवाजे के पास जाकर खड़ी हो गई। ये दृश्य देख कर मेरे कानों में ट्रेन की सीटी बजने लगी मैंने जल्दी जल्दी पूरा माडल समेटा और उसे उसी स्थिति में टेबल पर रख दिया, साथ ही पूरी क्लास को एक सख्त निर्देश दिया कि प्रियंका मैडम को कोई भी ये नहीं बताएगा कि ये किसने किया

हम सभी अपनी अपनी सीट पर बैठे प्रियंका मैडम का इंतजार करने लगे, मेरा मन एक एक पल में सौ कल्पना करने लगा, तभी प्रियंका मैडम दरवाजे से अंदर आई, सभी बच्चे उनके अभिवादन में सीट से उठ गए, मैडम ने हाथ के इशारे से सभी को बैठने को कहा, बच्चों के उठने और बैठने में जो आवाज हुई, मेरे दिल की हर धड़कन उसी आवाज में धड़क रही थी।

    जैसे ही मैडम की नजर माडल पर पड़ी वे चिल्लाईं ” किसकी हरकत है ये” सारी क्लास में पिन ड्राप साइलेंस छा गया मैडम फिर बोली “मुझे सीधा सीधा उसका नाम बता दो जिसने ये किया है वरना सारी क्लास को बेंत पड़ेगी” इतने में विकास बोल पड़ा “मैडम प्रताप ” फिर मैडम चिल्लाईं “प्रता ssss प” और बस अगले ही पल मैं क्लास के बाहर मुर्गा बना पड़ा था

मेरी आज तक इतनी बेइज्जती कभी नहीं हुई “प्रियंका मैडम ने एक झटके में मेरे अहसान भुला दिए, ठीक है अब मैं भी इनके बच्चे का कान जोर से मरोड़ुंगा जब वो जोर से रोएगा तब पता चलेगा, और ऐसा मैं बार बार करुंगा और मैडम बार बार उठ कर बच्चे को देखने आती रहेगी और विकास बेटा आज तो तू गया ” मेरे मन में वीर शिवाजी की छापामार युद्ध नीति, महाराणा प्रताप का भाला, घोड़ा कई युद्ध नीतियां मन में कुलांचे भरने लगीं अब दुश्मन को किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं है, आज हम वो करेंगे जो आज तक हमने नहीं किया भले ही हमारे टीचर्स हमें गुड स्टूडेंट न‌ कहें 

अब युद्ध तय था जो बात मेरे मन में थी वही बात मेरी सेना के मन में भी थी दुश्मन को उसके किए की सजा तो मिलनी ही चाहिए 

आज जैसे ही स्कूल की छुट्टी हुई ‘ महाराज प्रताप शाह टिहरी वाले’ और उनकी सेना दुश्मन को घेरने के लिए उचित दूरी बना कर उसके पीछे चल पड़े स्कूल जब काफी पीछे छूट गया तो एक जगह पर महाराज प्रताप ने लपक कर दुश्मन का कॉलर पकड़ लिया और सेना ने दुश्मन को चारों ओर से घेर लिया दुश्मन के पसीने छूट गए और घबराहट में दुश्मन के हाथ आया मेरे स्कूल बैग का फीता जो कि उसके हाथों के खिंचाव से अपनी जड़ों से उखड़ गया ‘महाराज’ दुश्मन को उसके किए की सजा देने ही वाले थे कि सेना में से कोई चिल्लाया ” प्रताप! रवि अंकल” मैंने देखा दूर रवि अंकल कुछ लोगों के साथ चले आ रहे थे, मैंने जल्दी से विकास का कॉलर छोड़ा और सेना से तुरंत वहां से खिसक लेने को कहा, हम वहां पर से जल्दी से दौड़ कर आगे आ गए। अब हमारे सामने दो टेंशन थे पहला ‘ बैग के टूटे फीते को कैसे ठीक किया जाए और दूसरा अगर रवि अंकल ने हमें झगड़ा करते हुए देख लिया तो वो जरुर घर पर बता देंगे और फिर घर पर हमारी पिटाई होना तय है।

खैर पहली परेशानी का हल हमारी सेना ने कर दिया, एक जूता कारीगर से थोड़ी मिन्नतों के बाद फ्री में हमारे बैग का फीता सिलवा दिया, इसके बाद हमने आज की बात का जिक्र अपने घरों तक न आने देने का वादा एक दूसरे से किया और अपने अपने घरों को चल पड़े, यहां मुझे रवि अंकल की भी टेंशन थी कि वो घर न पहुंच जाएं, बहार हाल रवि अंकल की नजर शायद मार्केट में हम पर नहीं पड़ी थी तभी तो वे हमारे घर नहीं पहुंचे।

   अगले दिन एक और टेंशन थी कि विकास हमारी शिकायत स्कूल में न कर दे, इसके लिए हम मित्रों ने एक प्लान बनाया, हमारे सब मित्र उसके पास पहुंचे और उसे डरा कर कहने लगे ” तूने कल प्रताप के बैग का फीता तोड़ा है और आज हम तेरी शिकायत प्रियंका मैडम से करने वाले हैं ” अब बैकफुट पर आने की बारी विकास की थी वो रोने लगा ” प्लीज़ मैडम से कुछ मत कहना ” उसे रोता हुआ देख हममें और उसमें एक डील हुई “ठीक है तू भी कुछ नहीं बताएगा और हम भी कुछ नहीं कहेंगे ” 

   ये डील हमारी तरफ से सिर्फ आज के लिए थी हमारी तरफ से अभी हिसाब पूरा बराबर नहीं हुआ था l

    विकास को सिर्फ एक बार हमने अपनी पूरी सेना की ताकत दिखानी थी और यह जताना था कि स्कूल में हमारा रुतबा क्या है, एक बार फिर दुश्मन का पीछा कर उसे घेरने की योजना बनने लगी और बस आज ही हम अपनी योजना को अंजाम देंगे।

 आज जैसे ही स्कूल की छुट्टी हुई विकास को ना जाने कैसे हमारे इरादों का अहसास हो गया उसने स्कूल के गेट के बाहर आते ही दौड़ लगा दी फिर हम भी उस के पीछे दौड़े विकास हमसे काफी आगे निकल गया था काफी दूर तक दौड़ने के बाद हमारा एक साथी हांफते हुए बोला ” अबे भागने दो उसे, भाग कर जाएगा कहां कल देखेंगे उसे” हमने भी ज्यादा देर दौड़ना उचित नहीं समझा ” भाग गया डरपोक कल इसे स्कूल आने से पहले ही घेरेंगे” दूसरा साथी बोला हम सब अगले दिन की योजना बना कर आगे बढ़ ही रहे थे कि दूर मोड़ पर हमारी नजर पड़ी कुछ लड़कों ने विकास को घेरा हुआ था विकास जमीन पर गिरा हुआ था और एक लड़का उसकी छाती पर बैठा हुआ था “अबे प्रताप ये तो डी पी एस स्कूल के हैं” एक साथी बोला, डी पी एस स्कूल वालों के साथ मांटेसरी वालों की पुरानी दुश्मनी थी, हम सबने एक दूसरे की ओर देखा और बस दौड़ पड़े मैंने उस लड़के को पकड़ा जो विकास की छाती पर चढ़ा हुआ था और उसे जोर का एक धक्का दिया, डी पी एस वालों पर हमारी सेना ने अचानक ऐसा हमला किया कि सब धूल चाटते रह गये और गिरते पड़ते भाग गए । फिर हम सब विकास के पास आए उसके घुटने से खून निकल रहा था ” तेरे घुटने से तो खून निकल रहा है विकास” मैंने उससे कहा फिर एक साथी ने इसका बैग पकड़ लिया और मैं उसे सहारा देकर एक मेडिकल स्टोर पर ले आया यहां हमने उसके घाव पर बैंड ऐड लगवाया और हम सभी साथी उसे उसके घर छोड़ कर आए। 

   और उसके बाद विकास हम सब का अच्छा दोस्त बन गया ।

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