वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस के घटनाक्रमों में कई महत्वपूर्ण अंतर हैं:राम का स्वरूप: वाल्मीकि रामायण में राम को एक आदर्श पुरुष के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, अर्थात पुरुषों में श्रेष्ठ।
तुलसीदास की रामचरितमानस में राम को परब्रह्म के रूप में दिखाया गया है, जो अवतारी हैं और उनसे भी ऊपर हैं।
भाषा और शैली: वाल्मीकि रामायण संस्कृत में लिखी गई है, जबकि रामचरितमानस अवधी भाषा में रचित है। यह भाषा का अंतर भी दोनों ग्रंथों के पाठकों के अनुभव को प्रभावित करता है।घटनाओं का विवरण: वाल्मीकि रामायण में घटनाओं का वर्णन अधिक विस्तार से किया गया है, जबकि रामचरितमानस में तुलसीदास ने कुछ घटनाओं को संक्षेप में प्रस्तुत किया है। उदाहरण के लिए, वाल्मीकि रामायण में सीता की अग्निपरीक्षा का विस्तृत वर्णन है, जबकि रामचरितमानस में इसे संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है ।
वाल्मीकि रामायण:वाल्मीकि रामायण में सीता की अग्निपरीक्षा का प्रसंग युद्ध कांड में आता है। इस महाकाव्य में भगवान राम ने सीता की अग्निपरीक्षा का आदेश दिया था ताकि यह साबित हो सके कि सीता रावण के द्वारा अपहरण के बावजूद पवित्र हैं।अग्नि देवता सीता को अग्नि से बाहर लाते हैं और उनकी पवित्रता की पुष्टि करते हैं। इस घटना का उद्देश्य समाज के समक्ष सीता की पवित्रता को प्रमाणित करना था।
रामचरितमानस:तुलसीदास की रामचरितमानस में भी सीता की अग्निपरीक्षा का उल्लेख है, लेकिन इसे भक्ति और आदर्श के दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है। यहाँ पर भगवान राम का उद्देश्य सीता की पवित्रता को सिद्ध करना नहीं, बल्कि समाज के लिए एक आदर्श स्थापित करना था।
रामचरितमानस में यह प्रसंग अधिक भक्ति भाव से ओतप्रोत है और तुलसीदास ने इसे भगवान राम की लीला के रूप में प्रस्तुत किया है।
कांडों की संख्या और नाम: वाल्मीकि रामायण में 6 कांड हैं, जबकि रामचरितमानस में 7 कांड हैं। वाल्मीकि रामायण के छठे कांड को युद्ध कांड कहा जाता है, जबकि तुलसीदास ने इसे लंका कांड नाम दिया है।
राम और सीता का संबंध: वाल्मीकि रामायण में सीता का चरित्र अपने पति के प्रति पूर्ण रूपेण समर्पित दिखाया गया है। तुलसीदास की रामचरितमानस में भी सीता का चरित्र समर्पित है, लेकिन तुलसीदास ने इसे अधिक भक्ति भाव से प्रस्तुत किया है।
वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में पुल निर्माण से पहले शिव की पूजा के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं:
वाल्मीकि रामायण:वाल्मीकि रामायण में भगवान राम द्वारा रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना और पूजा का कोई उल्लेख नहीं है। इस ग्रंथ में सेतु निर्माण के लिए वानर सेना द्वारा पत्थरों का उपयोग करके पुल बनाने का वर्णन है, लेकिन शिव की पूजा का प्रसंग नहीं मिलता।
रामचरितमानस:तुलसीदास की रामचरितमानस में भगवान राम द्वारा रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना और पूजा का उल्लेख है। इस ग्रंथ में बताया गया है कि भगवान राम ने सेतु निर्माण से पहले भगवान शिव की पूजा की थी और उनके आशीर्वाद से ही पुल का निर्माण सफलतापूर्वक पूरा हुआ।
सेतु का नामकरण: वाल्मीकि रामायण में इस पुल को ‘नल सेतु’ कहा गया है, क्योंकि इसका निर्माण नल के निरीक्षण में हुआ था। रामचरितमानस में इसे ‘राम सेतु’ के रूप में अधिक जाना जाता है, जो भगवान राम के नाम से जुड़ा है।
अवतार की अवधारणा: वाल्मीकि रामायण में श्रीराम को भगवान विष्णु का अवतार सांकेतिक रूप से बताया गया है, जबकि रामचरितमानस में इसे स्पष्ट रूप से और बार-बार जोर देकर कहा गया है।इन अंतर के बावजूद, दोनों ग्रंथों का उद्देश्य भगवान राम के जीवन और उनके आदर्शों को प्रस्तुत करना है, लेकिन उनके दृष्टिकोण और प्रस्तुति शैली में भिन्नता है।